दीवारें महज़ बटवारा नहीं करती
कभी कभी दूसरी दुनिया की
तरफ अग्रसर कर देती हैं
दिशाओं का ज्ञान तिलिस्म
जैसा लगता है
वो सूरज वो तारे
वो चांद और उसकी चांदनी
सब कुछ रहती हैं पर
कभी एहसास नहीं होता है
ये दीवारें दूसरी दुनिया में
तो पहुंचा देती हैं
घुट घुट कर मरने के लिए,
उपचार भी होता है
अस्पताल से लेकर चिकित्सक
भी रहते हैं पर दवाई तो
तनहाई वाली ही खिलाते हैं
हमारी दुनिया के लोगों से
भरी पड़ी है दूसरी दुनिया पर
सामंजस्य स्थापित करना
बहुत ही कठिन है
दूसरों के दुःख सुन कर
समझ कर अपना दुःख
तिनका सा लगता है
सोचने समझने की क्षमता
क्षीण होने लगती है जब
मनोवृत्ति के विपरीत
जीवनयापन करना हो
स्वतंत्रता तो है ही नहीं यहाँ
पांव में बेड़ियाँ भी नहीं है
पर हम लोग गुलाम हैं
इच्छाएं मन ही मन घुटने लगती हैं
हिम्मत दम तोड़ देती हैं
दीवार की ईटों को गिनने चलिए
तो सिर के बाल गिरने लगते हैं
ये दीवारें हैं जो कभी खत्म नहीं होती।
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अरुण शर्मा ©
सर्वाधिकार सुरक्षित
29/05/2017
सुंदर वैचारिक प्रस्तुति।
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thank you sir
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बहुत सुन्दर…..
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thank you mam
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सुन्दर
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thank you sir
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दीवारें बँटवारा ही नहीं करती, दूसरी दुनिया में ले जाती हैं, बहुत सटीक ! दीवारें ना बनें तो ही अच्छा…
एक बार बन जाएँ तो तोड़ना बड़ा कठिन हो जाता है।
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thank you mam
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अत्यंत विचारणीय ! एवं मंथन योग्य विषय ! विचार करना होगा !आभार “एकलव्य”
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टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार एकलव्य जी
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